1st Sem Unit 1 शारीरिक शिक्षा अर्थ एवं परिभाषायें, लक्ष्य एवं उद्देश्य

शारीरिक शिक्षा का परिचय



शारीरिक शिक्षा का अर्थ परिभाषा एवं महत्व


शारीरिक-शिक्षा शिक्षा का ही एक अभिन्न अंग है शारीरिक शिक्षा को समझने से पूर्व शिक्षा के बारे में जानना आवश्यक है

शिक्षा

सामान्य शब्दों में 'शिक्षा' शब्द का अर्थ सीखने-सिखाने की प्रक्रिया से है जिसमें वर्तमान पीढ़ी अपनी पिछली पीढ़ी से उनके द्वारा संचित ज्ञान एवं अनुभव का अर्जन करती है तथा उसे परिमार्जित करके उसे आने वाली पीढ़ियों को हस्तांतरित करती है। ज्ञान अर्जन एवं उसके हस्तांतरण की यह प्रक्रिया अनादिकाल से चली आ रही है।

शिक्षा एक निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात क्षमताओं का विकास, उसके ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में वांछित परिवर्तन ला कर उसे उसके परिवार, समाज एवं राष्ट्र के विकास में योगदान करने हेतु एक उपयोगी नागरिक बनाने का प्रयास किया जाता है।

शिक्षा का प्रकार औपचारिक अथवा अनौपचारिक हो सकता है परंतु उसका लक्ष्य सदैव एक सभ्य एवं सुसंस्कृत नागरिक तैयार करना होता है। 

शारीरिक शिक्षा


शारीरिक-शिक्षा में 'शारीरिक' शब्द से ही पता लगता है कि है यह शारीरिक क्रियाओं से संबंधित शिक्षा है।

शारीरिक शिक्षा, शिक्षा का एक अभिन्न अंग है जिसका लक्ष्य विभिन्न शारीरिक क्रियाओं व खेल गतिविधियों द्वारा छात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना होता है । सर्वांगीण विकास के अंतर्गत मुख्य रूप से शारीरिक विकास, मानसिक विकास, सामाजिक विकास व भावनात्मक विकास आते हैं। 


मनुष्य का शरीर ही शारीरिक शिक्षा का आधार होता है साथ मनुष्य का शरीर ही उसके अस्तित्व का पहला परिचय होता है।


उपनिषद में लिखित श्लोक 'शरीरमाद्यंम खलु धर्मसाधनम्' शरीर की महत्ता को इंगित करता है। इसका अर्थ यह है कि शरीर ही समस्त कर्तव्यों को पूर्ण करने का साधन है अतः इस शरीर को स्वस्थ रखना तथा उसकी क्षमताओं में विस्तार करना प्रथम लक्ष्य होना चाहिए।


शारीरिक शिक्षा की सामान्य परिभाषा 

शारीरिक शिक्षा शारीरिक क्रियाओं व खेलों के माध्यम से प्रदान की जाने वाली वह शिक्षा है जिसका लक्ष्य विद्यार्थी का संपूर्ण (सर्वांगीण) विकास करना होता है। जिसके अंतर्गत विद्यार्थी के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं भावनात्मक विकास के क्षेत्र आते हैं।

विभिन्न शारीरिक शिक्षाविदों ने शारीरिक शिक्षा की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं, समस्त परिभाषाएं विद्यार्थी के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास पर ही केंद्रित हैं।


शारीरिक शिक्षा विदों द्वारा दी गई कुछ परिभाषाएं निम्न हैं👇


शारीरिक-शिक्षा शिक्षा का वह अंग है जो कि व्यक्ति को शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से प्रशिक्षित कर उसके विकास को सुनिश्चित करता है।

:ए.आर. वेमैन (A.R.Wayman)


शारीरिक शिक्षा शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से छात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास के लिए शिक्षा है जो कि छात्र में शरीर, मन एवं आत्मा की पूर्णता हेतु होती है।

:जे.पी. थॉमस (J.P.Thomas)


शारीरिक क्रियाओं पर केंद्रित अनुभवों के माध्यम से व्यक्ति में आने वाले संपूर्ण परिवर्तनों के संकलित रूप को ही शारीरिक शिक्षा कहते हैं

:रोजलिंड कैसेडी (Rosalind Cassidy)


शारीरिक शिक्षा संपूर्ण शिक्षा तंत्र का वह बिंदु है जो कि शारीरिक बल से संबंधित क्रियाओं वह उनकी प्रतिक्रियाओं से संबंधित है 

:जे.बी. नैश (J.B.Nash)


शारीरिक शिक्षा विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से प्राप्त होने वाले अनुभवों का संकलन है 

:डैलबर्ट ओवरट्यूफर (Delbert Oberteuffer)


शारीरिक शिक्षा, संपूर्ण शिक्षा तंत्र का एक अभिन्न अंग है जिसका उद्देश्य परिणामों को दृष्टिगत रखकर चुनी गई शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से विद्यार्थी की मानवीय क्षमताओं का विकास करना होता है

:चार्ल्स ए. बुकर (Charls A. Bucher)


शारीरिक शिक्षा बाहुबल वाले क्रियाकलापों में भागीदारी के माध्यम से अर्जित अनुभवों का संकलन है जोकि व्यक्ति के अधिकतम संभव वृद्धि एवं विकास को प्रोत्साहित करता है।

:ब्राउनवेल (Brownwell)


शारीरिक शिक्षा सामान्य शिक्षा प्रणाली का एक अंग है जो कि बाहुबल युक्त शारीरिक क्रियाकलापों के माध्यम से विद्यार्थी की वृद्धि एवं विकास से संबंधित है। यह शारीरिक क्रियाओं के माध्यम से छात्र की संपूर्ण शिक्षा है। शारीरिक क्रियाकलाप छात्र में परिवर्तन लाने के उपकरण हैं जिनका चयन एवं संपादन इस तरह किया जाता है कि वे विद्यार्थी के शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं नैतिक पक्ष को प्रभावित करते हैं।

:एच. सी. बक (H.C. Buch)

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 शिक्षा एवं खेल का महत्व/लाभ 

शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेने से छात्र में विभिन्न प्रकार के गुणात्मक परिवर्तन आते हैं जो कि निम्नवत हैं 👇

1- शारीरिक विकास

1- बेहतर स्वास्थ्य व फिटनेस की प्राप्ति

2- नियमित व्यायाम श्वसन, हृदय, प्रतिरक्षा और अन्य शारीरिक प्रणाली को बेहतर बनाती हैं

3- बेहतर स्वास्थ्य के कारण कार्य क्षमता में वृद्धि

4- शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि 

5- मोटापे वह बढ़ते वजन पर नियंत्रण तथा सुस्त-शिथिल अथवा दौड़-भाग भरी जीवन शैली से जनित रोग जैसे डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, यूरिक एसिड, मानसिक तनाव आदि से छुटकारा

6- सामान्य बीमारियों के कारण एवं उनके निवारण की जानकारी

              2- मानसिक विकास

पुरानी कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है और व्यक्ति की समस्त स्थितियों परिस्थितियों को समझने की क्षमता व उन पर निर्णय लेने की क्षमता मस्तिष्क पर ही निर्भर करती है अतः मस्तिष्क का स्वस्थ वह संतुलित रहना बहुत आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेने पर निम्न विकास सहज ही हो जाते हैं

1- परिस्थितियों के शीघ्र आकलन करने की क्षमता का विकास

2- तुरन्त निर्णय लेने की क्षमता का विकास

3- समस्याओं का त्वरित समाधान करने की क्षमता का विकास

4- विषम परिस्थितियों में धैर्य ना खोने के गुण का विकास


3- सामाजिक विकास

व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है और समाज के प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता व उसका आचरण सामाजिक परिवेश को प्रभावित करता है। शांतिपूर्ण सामाजिक जीवन हेतु प्रत्येक व्यक्ति के अंदर विभिन्न सामाजिक गुणों का होना अत्यावश्यक होता है जो कि उसे समाज का एक उपयोगी अंग बनने में सहायक होते हैं। शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेने पर छात्र में निम्न सामाजिक गुणों का सहज विकास हो जाता है

1- खेल भावना और टीम भावना का विकास

2- सफलता अथवा कार्य सिद्धि के लिए के लिए सहयोग व त्याग जैसे गुणों का विकास

3- नियमों के पालन करने का गुण तथा नियामक संस्थाओं के सम्मान का गुण 

4- नेतृत्व क्षमता का विकास

5- नेतृत्व के निर्देशों एवं आदेशों का पालन करने का गुण

6- अपने दायित्व और कर्तव्यों को समझने व उन्हें पूर्ण करने का गुण

7- लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों का महत्व समझना

8- योग्यता का सम्मान करने का गुण

9- सामाजिक व धार्मिक सद्भाव व समरसता को बनाए रखने का गुण

10- राष्ट्रीय एकता एवं अंतरराष्ट्रीय सद्भाव का प्रचार व प्रसार

11- चारित्रिक विकास एवं खाली समय का सदुपयोग

12- आवश्यक नैतिक गुण जैसे ईमानदारी, समर्पण, निष्ठा, सहनशीलता, अधिकार एवं कर्तव्य के प्रति संवेदनशीलता व मानवीय मूल्यों का विकास


4. भावनात्मक विकास 

प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अनेक प्रकार की सहज भावनाएं होती हैं जैसे प्रेम, समर्पण, हर्ष, दया, उत्साह, निराशा, भय, एकाकीपन, क्रोध, घृणा, कुंठा, बदले की भावना, लोभ, ईर्ष्या आदि।

कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति की विभिन्न भावनाएं जागृत हो सकती हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भावनाओं पर नियंत्रण आवश्यक होता है और यदि भावनाओं का प्रदर्शन आवश्यक हो तो वह नियंत्रित वह स्वीकार्य रूप में होनी चाहिए।

शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में छात्र को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने अथवा नियंत्रित करने के अवसर स्वाभाविक रूप से प्राप्त होते हैं जिसके फलस्वरुप छात्र भावनात्मक रूप से अधिक संतुलित वह सक्षम बनता है.

कहा जा सकता है कि शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में नियमित रूप से भाग लेना हमें अनेक प्रकार के शारीरिक मानसिक सामाजिक एवं भावनात्मक लाभ पहुंचाता है जो कि हमें एक बेहतर, सफल, स्वस्थ और लंबा जीवन जीने सहायक होते हैं


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