Sem 1 आधुनिक ओलंपिक खेल

 आधुनिक ओलंपिक खेल



वर्ष 394 ईसवी में प्राचीन ओलंपिक खेलो के प्रतिबंधित हो जाने के बाद लगभग डेढ़ हजार वर्षों तक ओलंपिक खेलों को भुला दिया गया।


19वीं शताब्दी में यूरोप में सर्वमान्य सभ्यता के विकास के साथ पुरातन काल की इस परंपरा को पुनर्जीवित किया गया. ओलंपिक खेलों को पुनर्जीवित करने का श्रेय फ्रांस के अभिजात पुरूष बैरोन पियरे डी कुबर्टिन ( Pierre de Coubertin) को जाता है.

बैरोन पियरे डी कुबर्टिन
( Pierre de Coubertin)


पियरे डी कुबर्टिन प्राचीन ओलंपिक के आदर्शों से बहुत प्रभावित थे और उस समय संपूर्ण विश्व में व्याप्त युद्ध और अशांति के माहौल में उन्हे विश्व में शांति स्थापना के लिए ओलंपिक एक आशा की किरण के रूप में नजर आया।

कुबर्टिन मानते थे कि खेल युद्धों को टालने के सबसे अच्छे माध्यम हो सकते हैं.

ओलंपिक अभियान

कुबर्टिन ने ओलंपिक अभियान को एक आंदोलन के रूप में चलाया और उसके दो लक्ष्य रखे

  • खेलों के माध्यम से विश्व शांति की स्थापना
  • और विश्व में उत्कृष्टता, मित्रता और सम्मान की भावना का संचार करना

अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC)

आई.ओ.सी. की स्थापना पियरे डे कोबेर्टिन द्वारा 23 जून 1894 को की गई थी। यूनानी व्यापारी देमित्रिस विकेलस इसके प्रथम अध्यक्ष बने थे। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय समिति है जिसका मुख्यालय स्विट्जरलैण्ड के लॉज़ेन में स्थित है। 23 जून को प्रति वर्ष ओलिंपिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। ओलंपिक खेलों की आयोजन का संपूर्ण संचालन आई.ओ.सी. द्वारा किया जाता है और वर्तमान में 206 देश इसके सदस्य हैं। वर्तमान में थॉमस बक आई.ओ.सी. के अध्यक्ष हैं

पहले ओलंपिक खेल - 1896

कुबर्टिन की इस परिकल्पना के आधार पर वर्ष 1896 में पहली बार आधुनिक ओलंपिक खेलों का आयोजन 6 से 15 अप्रैल 1896 के दौरान यूनान की राजधानी एथेंस में हुआ. 14 देशों के 241 खिलाडि़यों ने इन खेलों में भाग लिया. 9 खेलों के 43 इवेंट इस ओलंपिक में हुए.



प्राचीन ओलंपिक खेलों की परंपरा के अनुसार ही पहले आधुनिक ओलंपिक खेलों में भी महिलाओं कि कोई खेल प्रतियोगिता नहीं आयोजित की गई। इन खेलों के आयोजन में 37,40,000 ड्रैकमस (यूनानी करेंसी) खर्च हुए।. 43 प्रतियोगिताओं में पहली बार मैराथन दौड़ को भी शामिल किया गया. शुरुआती दशक में ओलंपिक आंदोलन अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता रहा क्योंकि कुबर्टिन की इस परिकल्पना को किसी भी बड़ी शक्ति का साथ नहीं मिल सका था.

साल 1900 के पेरिस ओलंपिक खेलों में पहली बार महिलाओं ने भी ओलंपिक खेलों में भाग लिया। तथा 1904 में सेंट लुई में हुए ओलंपिक कोई खास लोकप्रिय नहीं हो सके, क्योंकि इस दौरान भव्य आयोजनों की कमी रही.

लंदन ओलंपिक 1908 में अपने चौथे संस्करण के साथ ओलंपिक आंदोलन शक्ति संपन्न हुआ. इसमें 2000 एथलीटों ने शिरकत किया. यह संख्या पिछले तीन आयोजनों के योग से अधिक थी.

साल 1936 के बर्लिन ओलंपिक से तो ओलंपिक आंदोलन में नई जीवन शक्ति आ गई. सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर जारी प्रतिस्पर्धा के कारण तत्कालीन जर्मन तानाशाह हिटलर ने इसे अपनी श्रेष्ठता साबित करने का माध्यम बना दिया.

1950 के दशक में सोवियत संघ-अमेरिका प्रतिस्पर्धा के खेल के मैदान में आने के साथ ही ओलंपिक की ख्याति चरम पर पहुंच गई. इसके बाद तो खेल कभी भी राजनीति से अलग नहीं हुआ.

खेल केवल राजनीति का विषय नहीं रहे. ये राजनीति का अहम हिस्सा बन गए. चूंकि सोवियत संघ और अमेरिका जैसी महाशक्तियां कभी नहीं खुले तौर पर एक दूसरे के साथ युद्ध के मैदान में भिड़ नहीं सकीं. लिहाजा उन्होंने ओलंपिक को अपनी श्रेष्ठता साबित करने का माध्यम बना लिया. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी ने एक बार कहा था कि अंतरिक्ष यान और ओलंपिक स्वर्ण पदक ही किसी देश की प्रतिष्ठा का प्रतीक होते हैं. शीत युद्ध के काल में अंतरिक्ष यान और स्वर्ण पदक महाशक्तियों का सबसे बड़ा उद्देश्य बनकर उभरे. बड़े खेल आयोजन इस शांति युद्ध का अंग बन गए और खेल के मैदान युद्धस्थलों में परिवर्तित हो गए.

सोवियत संघ ने वर्ष 1968 के मैक्सिको ओलंपिक में पदकों के होड़ में अमेरिका के हाथों मिली हार का बदला 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में चुकाया. सोवियत संघ की 50वीं वर्षगांठ पर वहां के लोग किसी भी कीमत पर अमेरिका से हारना नहीं चाहते थे.

साल 1980 में अमेरिका और उसके पश्चिम के मित्र राष्ट्रों ने 1980 के मॉस्को ओलंपिक में शिरकत करने से इनकार कर दिया. इसके बाद हिसाब चुकाने के लिए सोवियत संघ ने 1984 के लॉस एंजलिस ओलंपिक का बहिष्कार कर दिया.

बीजिंग ओलंपिक 2008 को अब तक का सबसे अच्छा आयोजन माना जा गया है. सोलह दिन तक चले ओलंपिक खेलों के दौरान चीन ने ना सिर्फ़ अपनी शानदार मेज़बानी से लोगों का दिल जीता बल्कि सबसे ज़्यादा स्वर्ण पदक जीत कर भी इतिहास रचा.

पहली बार पदक तालिका में चीन सबसे ऊपर रहा. जबकि अमरीका को दूसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा. भारत ने भी ओलंपिक के इतिहास में व्यक्तिगत स्पर्धाओं में पहली बार कोई स्वर्ण पदक जीता और उसे पहली बार एक साथ तीन पदक भी मिले.

प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध के कारण वर्ष 1916 में छठे ओलंपिक खेल और वर्ष 1940 और 1944 में 12वें और 13वें ओलंपिक खेलों का आयोजन नहीं हो पाया था।

कुबर्टीन द्वारा लिखित ओलम्पिक का आदर्श (सिद्धांत)- (Olympic Creed)

खेलों में जीतने से अधिक भाग लेना महत्वपूर्ण है।

जीतने से अधिक अच्छी तरह संघर्ष करना महत्वपूर्ण है।

और  जीतने से अधिक अच्छी तरह मुकाबला करना महत्वपूर्ण है 



ओलम्पिक ध्वज- बेरोंन पियरे डी कोबर्टीन के सुझाव पर 1913 में ओलम्पिक ध्वज का सृजन हुआ जून 1914 को इसका विधिवत उद्घाटन पेरिस में हुआ इस ध्वज को सर्वप्रथम 1920 के एंटवर्प ओलम्पिक में फहराया गया। ध्वज की पृष्टभूमि सफेद है सिल्क के बने ध्वज के मध्य में ओलम्पिक प्रतीक के रूप में पांच रंग के चक्र (छल्ले) (Olympic Rings) एक दूसरे से अंग्रेजी अक्षर W की आकृति में गुथे हुए दर्शाये गए हैं, जो विश्व के 5 महाद्वीपो के प्रतिनिधित्व करने के सांथ ही निष्पक्ष एवं मुक्त स्पर्धा का प्रतीक हैं।








  • नीला चक्र - यूरोप, 
  • पीला चक्र - एशिया, 
  • काला चक्र- अफ्रीका, 
  • हरा चक्र- ऑस्ट्रेलिया और 
  • लाल चक्र - उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका को दर्शाता है

ओलम्पिक का ध्येय वाक्य Olympic Motto-

पहले ओलंपिक में खिलाड़ियों को प्रेरित करने के उद्देश्य से पियरे डे कूबर्टिन ने ओलंपिक का ध्येय वाक्य (नारा) दिया जिसे उनके पादरी मित्र फादर डिडोन द्वारा लेटिन में लिखा गया था।

  • सिटियस (Citius)- तेज (Faster)
  • आल्टियस (Altius)- ऊंचा (Higher)
  • फोर्टियस (Fortius)- बलवान (Stronger)
  • कम्यूनिटर (Communiter)- साथ-साथ (Together)

ओलम्पिक का ध्येय वाक्य है जिनका अर्थ है तेज़,ऊंचा,बलवान और साथ-साथ । इसको पहली बार 1920 में ओलम्पिक के उद्देश्य के रूप में एंटवर्प (बेल्जियम) ओलम्पिक खेलो में प्रस्तुत किया गया।

20 जुलाई 2021 की IOC की बैठक में ओलंपिक के ध्येय वाक्य में Together (साथ-साथ) शब्द को जोड़ा गया है। Together (साथ-साथ) शब्द खेलों के माध्यम से एकता स्थापित करने की शक्ति को दर्शाता है 

ओलम्पिक का नया ध्येय वाक्य (New Olympic Motto)


ओलम्पिक मशाल- इसे जलाने की शुरुआत 1928 से एम्स्टर्डम ओलम्पिक से हुई। 1936 में बर्लिन ओलम्पिक में मशाल के वर्तमान स्वरूप को अपनाया गया। इसी समय से मशाल को आयोजित स्थल तक लाने का प्रचलन शुरू हुआ।इस मशाल को खेल शुरू होने के कुछ दिन पूर्व यूनान के ओलम्पिया में हेरा मन्दिर के सामने सूर्य की किरणों से प्रज्वलित किया जाता है विभिन्न खिलाड़ियों द्वारा वहाँ से आयोजन स्थल तक लाया जाता है इसी मशाल से खेल समारोह विशेष की मशाल प्रज्वलित की जाती है।






ओलम्पिक पदक- ओलम्पिक खेलो में तीन प्रकार के पदक दिए जाते है 1.स्वर्ण पदक 2.रजक पदक 3.कांस्य पदक।


टोक्यो 2020 ओलंपिक में दिए गए स्वर्ण रजत और कांस्य पदक


ओलंपिक परेड



ओलंपिक खेलों के उद्घाटन के समय समस्त प्रतिभागी देशों के दल परेड में भाग लेते हैं। परेड में हमेशा यूनान देश का दल सबसे आगे चलता है, यह सम्मान उसे ओलंपिक का जन्मदाता देश होने के कारण दिया जाता है और मेजबान देश का दल परेड में सबसे पीछे चलता है, बाकी देश अंग्रेजी वर्णमाला में अक्षरों के क्रम में भाग लेते हैं

ओलंपिक शुभंकर Olympic Mascot

ओलंपिक शुभंकर आमतौर पर काल्पनिक अथवा वास्तविक पात्र होते हैं , जो कि सामान्य तौर पर उस क्षेत्र के मूल निवासी, मानव आकृतियां, पशु-पक्षी, राष्ट्रीय प्रतीक आदि को प्रकट करती हैं जो उस जगह की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करती हैं जहां ओलंपिक और पैरालंपिक खेल हो रहे हैं। 

शुभंकर का उपयोग अक्सर युवा दर्शकों, विशेष रूप से बच्चों और बच्चों के लिए ओलंपिक खेलों की मार्केटिंग और प्रचार में मदद करने के लिए किया जाता है ।

ओलंपिक खेलों के शुभंकर रखने की शुरुआत 1972 के म्युनिख ओलंपिक खेलों से हुई थी जिसमें शुभंकर का नाम वाल्डी (waldi) था जो कि जर्मनी के एक कुत्ते की प्रजाति का नाम था 

वाल्डी waldi: 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेल का शुभंकर


मिराइटोवा और सोमेटी  (टोक्यो 2020 का शुभंकर)

विभिन्न ओलंपिक खेलों के शुभंकर चिन्ह 



ओलंपिक खेलों की शपथ



खेलों से पूर्व समस्त खिलाड़ी प्रशिक्षक और निर्णायक ओलंपिक में सच्ची खेल भावना के साथ भाग लेने की शपथ लेते हैं जिसकी शुरुआत 1920 की एंटवर्प में आयोजित ओलंपिक से हुई थी

24 जुलाई 2020 से 9 अगस्त 2020 तक टोक्यो (जापान) में 32वें ओलंपिक खेलों का आयोजन किया जाना था। परंतु सन 2020 में कोरोना महामारी के कारण ओलंपिक सहित समस्त खेल आयोजन रोक दिए गए थे। अब यह ओलंपिक खेल वर्ष 2021 में जापान में उन्ही तथियों पर आयोजित होंगे और इन्हें ओलंपिक 2020 के नाम से जाना जाएगा।

मिराईटोवा (Miraitowa) टोक्यो ओलंपिक 2020 का शुभंकर चिन्ह है। मिराईटोवा एक मुस्कुराता हुआ रोबोट सा दिखने वाली काल्पनिक आकृति है।




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