Sem 1 योग (प्रयोगात्मक परीक्षा)
योग प्रयोगात्मक
योग का अर्थ एवं परिभाषा:
‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की युजिर’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है- बाँधना, युक्त करना, जोड़ना, सम्मिलित होना, एक होना। इसका अर्थ संयोग या मिलन भी है।
महादेव देसाई के अनुसार- “शरीर, मन और आत्मा की समग्र शक्तियों को परमात्मा से संयोजित करना योग है।”
कठोशनिषद् में योग के विषय में कहा गया है- “जब पाँचों ज्ञानेन्द्रियां मन के साथ स्थिर हो जाती है और मन शान्त हो जाता है, जब बुद्धि स्थिर (अचंचल) हो जाती है तब उसमें शुभ संस्कारो की उत्पत्ति और अशुभ संस्कारों का नाश होने लगता है। वह बन्धन मुक्त हो जाता है। यही अवस्था योग है।
योग की परिभाषा
महर्षि पतंजलि ने योग को परिभाषित करते लिखा है, "योगश्चित्त वृत्ति निरोध:" अर्थात चित्त की वृत्तियों को रोकना ही योग है
योग, चित्त वृत्तियों का निरुद्ध होना है। अर्थात् योग उस अवस्था विशेष का नाम है, जिसमें चित्त में चल रही सभी वृत्तियां रूक जाती हैं। चित्त की सम्पूर्ण वृत्तियां को विभिन्न अभ्यासों के माध्यम से रोक देने की अवस्था समाधि या योग कहलाती है।
हमारा चित्त तरह-तरह की वस्तुओं, दृश्यों, स्मृतियों, कल्पनाओं, वासनाओं आदि में हमेशा उलझा रहता है, जिन्हें मन की वृत्ति भी कहा जाता है। जब हमारा चित्त इन सभी वृत्तियों से बाहर आ जाता है, या जब चित्त में किसी भी प्रकार की हलचल नहीं होती है यही स्थिति योग कहलाती है।
एवं
महर्षि पतंजलि ने योग को परिभाषित करते हुए यह भी कहा है, "युज्यते असौ योग:” अर्थात 'जो जोड़े वही योग है', अर्थात् आत्मा व परमात्मा को जोड़ना ही योग है।
पतंजली योग सूत्र के अनुसार, चित्त की सम्पूर्ण वृत्तियों का निरोध अथवा चित्त का बिलकुल शान्त हो जाना समाधि की अवस्था कहलाती है
भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है "योग: कर्मसु कौशलम्" अर्थात कर्म करने का कौशल ही योग है
अर्थात निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल ही योग है। एवम् दुःख-सुख, लाभ-हानि, शत्रु-मित्र आदि द्वन्द्वों में सर्वत्र समभाव रखना योग है। “
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योग के प्रकार
भारतीय योग शास्त्रियों के अनुसार योग 8 प्रकार का होता है-
- हठयोग
- लययोग
- राजयोग
- भक्तियोग
- ज्ञानयोग
- कर्मयोग
- जपयोग
- अष्टांगयोग
योग के उद्देश्य (लाभ)
- मानसिक शान्ति की प्राप्ति
- मानसिक शक्ति का विकास करना
- रचनात्मकता का विकास करना
- तनावों से मुक्ति पाना
- प्रकृति विरोधी जीवनशैली में सुधार करना।
- वृहत-दृष्टिकोण का विकास करना।
- उत्तम शारीरिक क्षमता का विकास करना।
- शारीरिक रोगों से मुक्ति पाना।
- समस्त व्यसनों जैसे मदिरापान तथा मादक द्रव्य व्यसन से मुक्ति पाना।
- मनुष्य का दिव्य रूपान्तरण।
अष्टांग योग - Ashtanga Yoga
अष्टांग का अर्थ है "आठ अंग" यह योग के आठ अंग या शाखाएँ है। जो कि पतंजलि के योग सूत्र में वर्णित है।
अष्टांग योग में शरीर, मन और प्राण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति के लिए आठ प्रकार के साधन बताये हैं, जिसे अष्टांग योग कहते हैं। योग के ये आठ अंग हैं -
- यम [नैतिकता ]
- नियम[आत्म-शुद्धिकरणऔर अध्ययन]
- आसन [मुद्रा]
- प्राणायाम [सांस नियंत्रण]
- प्रत्याहार [भावना नियंत्रण]
- धारणा [एकाग्रता]
- ध्यान [ध्येय वस्तु के चिन्तन में लीन हो जाना]
- समाधि [ध्यान की चरम अवस्था]
इनमें पहले 4 साधनों का संबंध मुख्य रूप से स्थूल शरीर से है। ये सूक्ष्म से स्पर्श मात्र करते हैं। इसलिए इन्हें बहिरंग साधन कहते हैं
जबकि बाद के 4 साधन शरीर को गहरे तक स्पर्श करते हुए उसका परिष्कार करते हैं इसीलिए इन्हें अंतरंग साधन कहा गया है।
प्रारंभिक 4 अंगों के लम्बे अभ्यास व पालन करने के बाद ही प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि (मुक्ति) का अभ्यास संभव है
यम
यम का अर्थ है चित्त को धर्म में स्थित रखने के साधन । ये 5 हैं:
- अहिंसा: मन, वचन व कर्मद्वारा किसी भी प्राणी को किसी तरह का कष्ट न पहुंचने की भावना अहिंसा है।
- सत्यः स्वयं की बुद्धि से समझा गया, स्वयं की आंखों से देखा गया और कानों से सुना गया तथा उसे वैसे ही व्यक्त कर देना सत्य है।
- मन, वचन, कर्म से चोरी न करना, दूसरे के धन का लालच न करना अस्तेय है।
- ब्रह्मचर्य: इंद्रियों को संयमित रखना तथा इंद्रिय सुखों विशेषकर यौनिक सुख के अधीन ना होना ब्रह्मचर्य कहलाता है।
- अपरिग्रहः अनायास प्राप्त हुए सुख के साधनों का त्याग अपरिग्रह है। स्वार्थ के लिए धन, संपत्ति तथा भोग सामग्रियों का संचय करना भी अपरिग्रह है।
नियम
नियम भी 5 प्रकार के हैं, जो व्यक्तिगत नैतिकता से संबंधित हैं। ये हैं:
- शौचः शरीर एवं मन की पवित्रता शौच है। शरीर को स्नान, सात्विक भोजन, षटक्रिया आदि से शुद्ध रखा जा सकता है। मन की अंत:शुद्धि, राग, द्वेष आदि को त्यागकर मन की वृत्तियों को निर्मल करने से होती है।
- संतोष: अपने कर्तव्य का पालन करते हुए जो प्राप्त हो उसी से संतुष्ट रहना या परमात्मा की कृपा से जो मिल जाए उसे ही प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करना संतोष है।
- तपः स्वयं से अनुशाषित रहना अर्थात सुख-दुख, सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास आदि द्वंद्वों को सहन करते हुए पूर्ण अनुशासन के साथ अपने कर्तव्यों को करते रहना।
- स्वाध्यायः विचार शुद्धि और ज्ञान प्राप्ति के लिए आत्मचिंतन, विद्याभ्यास, धर्मशास्त्रों का अध्ययन, सत्संग और विचारों का आदान-प्रदान स्वाध्याय है।
- ईश्वर प्रणिधान: मन, वाणी, कर्म से ईश्वर की भक्ति और उसके नाम, रूप, गुण, लीला आदि का श्रवण, कीर्तन, मनन और समस्त कर्मों का ईश्वरार्पण 'ईश्वर प्रणिधान' है।
आसन
आसन शरीर को किसी विशेष मुद्रा अथवा स्थिति में लाकर शरीर के किसी अंग अथवा तन्त्र को साधने एवं नियंत्रित करने का तरीका है जिनके करने से शरीर एवं मन पर संयम होता है। आसनों की सिद्धि से नाड़ियों की शुद्धि, आरोग्य की वृद्धि एवं शरीर व मन को स्फूर्ति प्राप्त होती है।
प्राणायाम
श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायाम मन की चंचलता और विक्षुब्धता पर विजय प्राप्त करने के लिए बहुत सहायक है।
जैसे शरीर की शुद्धि के लिए जैसे स्नान आवश्यक है, वैसे ही मन की शुद्धि के लिए प्राणायाम। प्राणायाम से हम स्वस्थ और निरोग होते हैं, दीर्घायु प्राप्त करते हैं, हमारी स्मरण शक्ति व मानसिक स्थिरता बढ़ती है और मस्तिष्क के रोग दूर होते हैं।
प्रत्याहार
इंद्रियों को वश में करना एवं उन पर विजय प्राप्त करना प्रत्याहार कहलाता है। चित्त को चंचल करने वाली इंद्रियों विषय वासनाओं से हटा कर अंतर्मुखी करने की अवस्था को प्रत्याहार कहते हैं ।
धारणा
धारणा मन की स्थिरता का घोतक है। इन्द्रियाँ एवं मन को स्थूल विषयों से हटाकर सूक्ष्म लक्ष्य (ध्येय विषय) पर एकाग्रचित्त करना धारणा कहलाता है।
ध्यान
किसी एक स्थान पर या वस्तु पर निरन्तर मन स्थिर होना ही ध्यान है। जब ध्येय वस्तु के चिन्तन में चित्त लीन हो जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में किसी अन्य वस्तु का ज्ञान अथवा उसकी स्मृति चित्त में प्रविष्ट नहीं होती।
समाधि
समाधि ध्यान की चरम अवस्था है, जिसमें चित्त ध्येय वस्तु के चिंतन (ध्यान) में पूरी तरह लीन हो जाता है तथा उसका स्थूल जगत से सम्पर्क नही रहता। योग दर्शन समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति को संभव मानता है।
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योग और व्यायाम में अंतर
- एक्सरसाइज (व्यायाम) मुख्य रूप से शारीरिक प्रक्रिया है
- योगासन शारीरिक, मानसिक एवं भावानात्मक प्रक्रिया है
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- एक्सरसाइज (व्यायाम) शरीर की गतिशीलता को बढ़ाता है.
- योगासन शरीर एवम चित्त की स्थिरता को बनाए रखता है
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- एक्सरसाइज (व्यायाम) से शरीर बाहर से बलिष्ठ दिखाई देता है.
- योगासन आंतरिक अंगों पर अधिक प्रभाव डालता है
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- एक्सरसाइज (व्यायाम) में सांसों की गति में अनियंत्रित बदलाव होते रहते हैं
- योग में सांसों पर संतुलन रखा जाता है और आसन के आधार पर सांस लेनी होती है.
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- एक्सरसाइज (व्यायाम) से मांसपेशियों में मजबूती व कड़ापन आ जाता है.
- योगासन से शरीर लचीला रहता है
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- एक्सरसाइज (व्यायाम) तीव्रता और प्रबलता पर जोर देती है, जिससे मांसपेशियों को क्षति भी पहुंच सकती है
- योग धीमी गति से किया जाता है और इससे संयम व सहनशक्ति में वृद्धि होती है.
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- एक्सरसाइज (व्यायाम) से तेजी से ऊर्जा खर्च होती है जिससे थकान होती है.
- योग करते समय ऊर्जा धीरे धीरे खर्च होती है एवम् व्यक्ति स्फूर्ति का अनुभव करता है
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- एक्सरसाइज (व्यायाम) से पाचन शक्ति तेज हो जाती है जिससे भूख में वृद्धि होती है
- योग से पाचन शक्ति धीरे होती है जिससे भूख कम होती है तथा व्यक्ति केवल आवश्यकता अनुसार ही भोजन करता है
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- एक्सरसाइज (व्यायाम) के लिए आपको पर्याप्त जगह और साधन/ सामान की जरूरत होती है
- योग के लिए सिर्फ एक मैट और थोड़ी सी जगह की जरूरत होती है
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- एक्सरसाइज (व्यायाम) हर उम्र का इंसान नहीं कर सकता जैसे की वृद्ध या बीमार व्यक्ति
- योग हर आयु का व्यक्ति कर सकता है. बीमार व्यक्ति भी कुछ आसान सांसों की क्रिया कर सकता है.
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BMI - बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई)
BMI शरीर के वजन एवं लंबाई का अनुपात बताने वाला सूचकांक है जिससे यह पता चलता है कि शरीर का वजन कितना कम अथवा ज्यादा है अर्थात शरीर में वसा की मात्रा कितनी है। एवं आपकी हाइट के अनुसार आपका वजन कितना होना चाहिए।
BMI 18 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए अधिक उपयोगी है। BMI का बहुत अधिक अथवा कम होना दोनों ही स्थितियां स्वास्थ्य के लिए के लिए चेतावनी हो सकती है।
उच्च BMI शरीर में अतिरिक्त वसा का सूचक होता है। जिसे डायबिटीज, स्ट्रोक, हाई ब्लड प्रेशर, हाई एलडीएल कोलेस्ट्रॉल, हार्ट डिजीज़ और ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसे स्वास्थ्य जोखिमों की शुरुआत होने की चेतावनी के रूप में समझा जाता है।
BMI का काफी कम होना व्यक्ति की कमजोरी, कुपोषण, कमजोर हड्डियों एवं खराब स्वास्थ्य को इंगित करता है।
BMI की कैलकुलेशन
BMI की गणना निम्न सूत्र से की जाती है
BMI = वजन (किलोग्राम में) / लंबाई2 (मीटर में)
[BMI = Weight (Kg.) / Height2 (Meters)]
( BMI की गणना करने के लिए वजन में लंबाई के वर्ग का भाग दिया जाता है।यहां पर शरीर का वजन किलोग्राम में एवं लंबाई मीटर एवं सेंटीमीटर में लिखी जानी चाहिए)
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार BMI कैलकुलेशन से प्राप्त संख्या के आधार पर व्यक्ति की वजन एवं स्वास्थ्य के बारे में निम्न निष्कर्ष निकाले गए हैं
BMIसंख्या - निष्कर्ष
BMI 18 से कम - अंडरवेट अर्थात व्यक्ति का स्वास्थ्य कमजोर है, हो सकता है व्यक्ति कुपोषण से ग्रस्त हो। उसका वजन उसकी लंबाई के अनुपात में कम है
BMI 18 से 25 के बीच में - यह व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य व हेल्दी वेट को इंगित करता है। अच्छे खिलाड़ियों, सैनिकों एवं शारीरिक रूप से सक्रिय व्यक्तियों का BMI प्रायः 18 से 25 के बीच में ही होता है।
BMI 25 से 30 के बीच में - यह व्यक्ति में मोटापे की शुरुआत को इंगित करता है, इस अवस्था में व्यक्ति को समुचित शारीरिक व्यायाम आवश्यक रूप से प्रारंभ कर देना चाहिए
BMI 30 से 40 के बीच में - ओवरवेट अर्थात व्यक्ति मोटापा ग्रस्त है तथा उसे अपने वजन कम करने का गंभीर प्रयास शुरू कर देने चाहिए । इस अवस्था में व्यक्ति को शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ चिकित्सक के परामर्श अनुसार अपने भोजन एवं जीवन शैली में भी बदलाव लाने चाहिए
BMI 40 से अधिक - व्यक्ति गंभीर मोटापे से ग्रस्त है तथा उससे होने वाली कई बीमारियां उसे घेरे रखती हैं एवं इस स्थिति में उसे मेडिकल सहायता भी लेनी पड़ सकती है।
BMI व्यक्ति के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण इंडिकेटर है परंतु केवल BMI के आधार पर ही व्यक्ति के स्वास्थ्य के बारे में संपूर्ण निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता. BMI की भी अपनी सीमाएं होती हैं
BMI के अतिरिक्त अन्य बातों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए. BMI पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग होता है और इसे सौ प्रतिशत सही नहीं माना जा सकता है। इसमें केवल वजन और ऊंचाई के अनुसार गणना की जाती है, जबकि बॉडी फैट कंटेट और मसल्स कंटेट नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं के शरीर पर पुरुषों की तुलना में अधिक वसा होता है लेकिन BMI एक समान होता है। इसी तरह बड़े लोगों के शरीर पर वयस्कों की तुलना में अधिक वसा होता है। एथलीट का गैर एथलीटों की तुलना में शरीर कम मोटा होता है।
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