स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य शिक्षा

 

स्वास्थ्य एवं स्वास्थ्य शिक्षा

  • स्वास्थ्य का अर्थ, परिभाषा एवं क्षेत्र
  • स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ, सिद्धांत एवं महत्व


किसी भी देश की सबसे बड़ी पूंजी उसके स्वस्थ नागरिक होते हैं। अतः स्वस्थ रहना प्रत्येक नागरिक की मूलभूत आवश्यकता है तथा देश के नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करना सरकार का मूलभूत कर्तव्य होता है।


सामान्य शब्दों में स्वस्थ होने का अर्थ शरीर में बीमारियों अथवा दुर्बलता के ना होने से लिया जाता है। परंतु शारीरिक स्वस्थता संपूर्ण स्वास्थ्य का केवल एक क्षेत्र है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा -

स्वास्थ्य सिर्फ शरीर में रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति ही नहीं बल्कि एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक खुशहाली की स्थिति है। 


स्वस्थ होना शरीर की वह योग्यता है जो कि शरीर को निरंतर बदलती परिस्थितियों के अनुसार ढलने के योग्य बनाती है, जिससे व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों को बिना अनावश्यक थकान के अच्छी तरह करने की शक्ति प्राप्त करता है, व्यक्ति जीवन के तनावों को झेलने में सक्षम बनाती है तथा व्यक्ति को अपने व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन का आनंद उठाने के योग्य बनाती है।


स्वस्थ लोग रोजमर्रा की गतिविधियों से निपटने के लिए और किसी भी परिवेश के मुताबिक अपना अनुकूलन करने में सक्षम होते हैं। शरीर में रोग की अनुपस्थिति एक वांछनीय स्थिति है लेकिन यह स्वास्थ्य को पूर्णतया परिभाषित नहीं करता है। 


स्वास्थ्य की एक अन्य सारगर्भित परिभाषा जे.एफ. विलियम (J.F. William) द्वारा दी गई है जिसके अनुसार-

स्वास्थ्य, जीवन की वह गुणवत्ता (quality) है जो कि व्यक्ति को अधिकतम जीने के लिए एवं अपने जीवन काल में अपने दैनिक आवश्यक कार्यों को पूर्ण सामर्थ्य के साथ करने के योग्य बनाती है।

(Live most and serve best)


स्वास्थ्य के आयाम (Dimensions of Health)


स्वास्थ्य के आयाम अथवा क्षेत्र से तात्पर्य जीवन के उन क्षेत्रों में स्वास्थ्य की गुणवत्ता से है जिनसे व्यक्ति के संपूर्ण स्वास्थ्य का आकलन एवं मूल्यांकन होता है।


स्वास्थ्य के 4 आयाम हैं

  1. शारीरिक आयाम (physical dimension)
  2.  मानसिक आयाम (mental dimension)
  3. सामाजिक आयाम (social dimension)
  4. भावनात्मक आयाम (emotional dimension)


1. शारीरिक आयाम


शारीरिक आयाम से तात्पर्य शरीर के समस्त बाहरी एवं आंतरिक अंग एवं तंत्रों के ठीक होने एवं सुचारू रूप से कार्य करने से है।

इसमें शरीर के समस्त तंत्रों जैसे श्वसन, पाचन, परिसंचरण, कंकाल तंत्र आदि का ठीक से कार्य करना तथा नाड़ी दर, रक्तचाप, शारीरिक वजन, BMI आदि का आयु व लिंग के अनुरूप होने से है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति की अच्छी कद काठी, अच्छा अंग विन्यास, सुडौल व मजबूत शरीर एवं कार्य कुशलता भी शारीरिक आयाम के अंतर्गत आते हैं।


2. मानसिक आयाम


मानसिक आयाम का तात्पर्य अच्छे मानसिक संतुलन से है जो कि उसे अपने समाज में सौहार्द पूर्वक रहने के योग्य बनाता है। 


मानसिक रूप से संतुलित व्यक्ति सामान्यतः बुद्धिमान, तर्क एवं विवेकपूर्ण, समस्याओं से ना घबराने वाला, तेजी से निर्णय लेने वाला, आत्म विश्वासी, स्वाभिमानी, आत्म-नियंत्रित, उत्साही, संयमित, तनाव मुक्त तथा स्थिर स्वभाव का होता है। 


मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अंतर्द्वंदों से मुक्त होता है तथा कभी भी निराशा का शिकार नहीं होता है। वह अपनी कमियों को पहचानता व स्वीकार करता है तथा उन्हें दूर करने का प्रयास करता है, वह अपने दायित्वों को समझता है तथा अपनी आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं को पूर्ण करने का प्रयास करता है, वह जीवन में विषम परिस्थितियां आने पर उनका सामना करता है तथा उसे अपनी क्षमताओं एवं लक्ष्यों का पता होता है।


मानसिक आयाम का क्षेत्र बहुत व्यापक है केवल किसी मानसिक बीमारी की अनुपस्थिति तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह एक सकारात्मक और सार्थक मानसिक स्थिति है।


3. सामाजिक आयाम


स्वास्थ्य के सामाजिक आयाम स्वास्थ्य की वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति अपनी शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं का उपयोग करते हुए सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप सामाजिक हितों हेतु यथोचित व्यवहार करना सीख जाता है।


व्यक्ति समाज की प्रथम इकाई है अतः किसी प्रगतिशील उन्नत समाज के निर्माण के लिए उस समाज के व्यक्तियों में अच्छे सामाजिक गुणों का होना अति आवश्यक है। 

सामाजिक रुप से स्वस्थ व्यक्ति के अंदर ईमानदारी, सहयोग की भावना, सद्भावना, स्वार्थहीनता, निष्पक्षता, कल्याणकारी स्वभाव, टीम भावना, नेतृत्व, संस्थाओं के प्रति आदर, नियम संगत आचरण, न्याय भावना एवं सर्वजन हिताय जैसे गुण होने चाहिए।


4. भावनात्मक आयाम 


भावनात्मक स्वास्थ्य से तात्पर्य है कि प्रत्येक परिस्थिति में व्यक्ति का अपनी मानसिक स्थिति, विचार, भावनाएं और व्यवहार उसके नियंत्रण में हो।


व्यक्ति का स्वभाव एवं व्यवहार उसकी भावनाओं से नियंत्रित होता है। व्यक्ति के अंदर असंख्य भावनाएं होती है जिनमें प्रमुख रूप से प्रेम, उत्साह, खुशी, प्रशंसा, आशा, दया, कृतज्ञता, संतोष जैसी सकारात्मक भावनाएं हैं

तथा क्रोध, बदला, घृणा, घमंड, ईर्ष्या, भय, निराशा, शर्मिंदगी, हीन भावना, उदासी जैसी नकारात्मक भावनाएं भी होती हैं। 


किसी परिस्थिति वश व्यक्ति के अंदर कोई भी भावना अंदर जन्म ले सकती है, व्यक्ति उस भावना के प्रभाव में कितना संतुलित रह सकता है यह उसकी भावनात्मक स्वास्थ्य को इंगित करती है


प्रत्येक भावना का एक विशेष प्रभाव होता है परंतु किसी भावना में बुरी तरह बह जाना चिंताजनक भावनात्मक स्वास्थ्य की तरफ इशारा करता है।


कई लोग जो कि शारीरिक मानसिक एवं सामाजिक रुप से स्वस्थ प्रतीत होते हैं परंतु उनका अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं होता है जिस कारण वे भावनाओं की प्रतिक्रिया वश कई बार पागलपन जैसी घटनाएं कर बैठते हैं एवं अप्रत्याशित घातक कदम उठा लेते हैं। भावनात्मक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति अपने लिए अथवा दूसरों के लिए घातक हो सकते हैं।


व्यक्ति का सामान्य सी बात पर अति प्रतिक्रिया (ओवर रिएक्शन) करना भी चिंताजनक भावनात्मक स्वास्थ्य की निशानी है। यदि व्यक्ति अक्सर भावनात्मक असंतुलन के लक्षण प्रकट करे तो उसे अवश्य ही किसी मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए




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