2. परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

 प्रश्न 1सामान्य शारीरिक फिटनेस (Physical Fitness) क्या है

सामान्य शारीरिक फिटनेस शरीर की वह क्षमता है जिससे व्यक्ति अनावश्यक थकान के बिना अपने सामान्य दैनिक कार्यों को पूर्ण ऊर्जा व सतर्कता के साथ कर पाता है। तथा इसके साथ उसमें अपने खाली समय का सदुपयोग करने और किसी अप्रत्याशित आपात स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त ऊर्जा विद्यमान रहती है।

प्रश्न 2शारीरिक फिटनेस (Physical Fitness) कितने प्रकार की होती है

शारीरिक फिटनेस दो प्रकार की होती है 

  1. स्वास्थ्य संबंधित फिटनेस 
  2. कौशल संबंधित फिटनेस

 1. स्वास्थ्य से संबंधित फिटनेस - 

स्वास्थ्य से संबंधित फिटनेस से तात्पर्य यह है कि शरीर के सभी तंत्र स्वस्थ हों व पूर्ण क्षमता से कार्य कर रहे हों तथा व्यक्ति अपने सामान्य दैनिक कार्यों को सतर्कता पूर्वक कर रहा हो तथा अपने खाली समय का सदुपयोग विभिन्न रचनात्मक एवं आनंददाई गतिविधियों के साथ कर रहा हो।

2. कौशल संबंधित फिटनेस-

कौशल संबंधित फिटनेस से तात्पर्य यह है कि किसी विशेष कार्य को करने के लिए विशेष प्रकार की फिटनेस की आवश्यकता होती है जिसमें उनकी क्षमताएं सामान्य फिटनेस वाले व्यक्ति से अधिक होती है। 

जैसे एक सैनिक और खिलाड़ी की फिटनेस सामान्य लोगों से बेहतर होती है। 

प्रश्न 3. शारीरिक फिटनेस के कितने घटक होते हैं 

शारीरिक शिक्षा एवं खेल विशेषज्ञों द्वारा शारीरिक फिटनेस के कुल 10 घटक निर्धारित किए गए हैं👇

  1. मांसपेशीय शक्ति (muscular strength- स्ट्रैंथ)
  2. मांसपेशीय सहनशक्ति (muscular endurance - इंड्योरेंस)
  3. कार्डियोवैस्कुलर सहनशक्ति (cardiovascular endurance)
  4. लचकता (flexibility- फ्लैक्सिबिलिटी) 
  5. गति (speed- स्पीड)
  6. प्रतिक्रिया समय (Reaction time)
  7. स्फूर्ति (agility- ऐजीलिटि)
  8. शारीरिक संतुलन (body balance बैलेंस)
  9. आंख और हाथों में समन्वय (eye-hand coordination कोआर्डिनेशन)
  10. आंख और पैरों में समन्वय (eye-leg coordination कोआर्डिनेशन)

प्रश्न 4 - संतुलित आहार (Balance Diet) की परिभाषा लिखिए

ऐसा आहार जिसमें भोजन के समस्त पोषक तत्व (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज लवण व जल) पर्याप्त मात्रा व अनुपात में मौजूद हो तथा वह शरीर को दैनिक कार्यों हेतु आवश्यक ऊर्जा प्रदान करे तथा हमें निरोग रहने में भी सहायक हो, ऐसा आहार संतुलित आहार कहलाता है 


प्रश्न: वैदिक काल में शारीरिक शिक्षा की स्थिति कैसी थी

वैदिक काल (2500 BC - 600 BC)

वेद, पुराण, उपनिषद, आयुर्वेद, योगसूत्र आदि धर्म ग्रंथ वैदिक काल की जानकारियों का प्रमुख स्रोत है। इस काल में योग की उत्पत्ति हुई थी तथा स्वास्थ्य एवं आरोग्य प्राप्त करने हेतु सूर्य नमस्कार एवं प्राणायाम का अभ्यास मुख्य रूप से किया जाता था। व्यक्तियों की शारीरिक एवं आध्यात्मिक विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता था। 

यजुर्वेद में युद्ध कला-कौशल एवं अस्त्र-शस्त्र के विज्ञान का वर्णन तथा सामवेद में संगीत, गायन, नृत्य एवं नाट्य कला का वर्णन मिलता है।

उपनिषदों में लिखित उक्ति 'शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्' से शारीरिक विकास के महत्व का पता चलता है जिसका अर्थ यह है कि 'शरीर के माध्यम से ही व्यक्ति अपने धर्म (कर्तव्य) को पूर्ण कर सकता है'

आयुर्वेद में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विशेष प्रकार की आहार-व्यवहार व व्यायाम का उल्लेख मिलता है। विभिन्न धर्म शास्त्रों में गुरुकुल परंपरा का उल्लेख मिलता है जिसमें शिष्य गुरु के आश्रम में रहकर ज्ञान का अर्जुन एवं युद्ध-कला कौशल का अभ्यास करते थे।

धार्मिक ग्रंथों में वैदिक काल के लोगों को आर्य कहा गया है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि आर्य जाति के लोग मध्य एशिया से आकर भारत के गंगा और सिंधु मैदानों में बस गए थे इसलिए प्राचीन भारत को आर्यावर्त के नाम से भी जाना जाता है। आर्य लोग मजबूत और ऊंची कद काठी के लोग थे। पशुपालन व कृषि उनका मुख्य व्यवसाय था।

आर्य लोग युद्ध प्रेमी थे जो कि हमेशा युद्ध कलाओं जैसे मल्ल युद्ध, तीरंदाजी, तलवारबाजी, भाला फेंकना, घुड़सवारी रथों की दौड़, हाथी की सवारी, बॉक्सिंग जैसे खेलों का अभ्यास करते थे

प्रश्न: द्रोणाचार्य पुरस्कार पर टिप्पणी लिखिए

द्रोणाचार्य पुरस्कार भारत के उन खेल प्रशिक्षकों को प्रदान किया जाता है जिन से प्रशिक्षण प्राप्त खिलाड़ी भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं जैसे एशियाई खेल, कॉमनवेल्थ खेल, ओलंपिक खेल, वर्ल्ड कप आदि में उल्लेखनीय सफलताएं प्राप्त करते हैं।

महा आचार्य द्रोणाचार्य महाभारत महाकाव्य में पांडवों और कौरवों की गुरु थे तथा उनके शिष्य अनेक प्रकार की युद्ध कलाओं में पारंगत थे इसीलिए कौन के नाम पर इस पुरस्कार को वर्ष 1985 में स्थापित किया गया। 

इसमें पुरस्कार स्वरूप गुरु द्रोणाचार्य की कांस्य प्रतिमा, 15 लाख रुपए की राशि और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है 

प्रश्न: वृद्धि एवं विकास में अंतर लिखिए 

  1. वृद्धि दृश्य, प्रकट व प्रत्यक्ष रूप से होती है

  1. वृद्धि को मापा जा सकता है जैसे लंबाई, वजन, आकृति आदि

  1. गर्भावस्था से परिपक्वता की आयु तक वृद्धि जारी रहती है

  1. वृद्धि की सीमा आनुवंशिकता द्वारा तय होती है

  1. यह एक सरल प्रक्रिया होती है

  1. वृद्धि में विकास समाहित नहीं होता है

  1. वृद्धि में होने वाले परिवर्तन केवल संरचनात्मक होते हैं

  1. वृद्धि केवल धनात्मक होती है

  1. वृद्धि का क्रम निश्चित होता है

  1. वृद्धि शारीरिक परिपक्वता की द्योतक होती है

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  1. विकास दृश्य अदृश्य (प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष) हो सकता है

  2. विकास का प्रत्यक्ष मापन संभव नहीं होता है। केवल विशेष विधियों द्वारा इसका अनुमान लगाया जा सकता है अथवा इसका अनुभव किया जा सकता है

  3. विकास गर्भ से मृत्यु तक (जीवन पर्यंत) जारी रहता है

  4. विकास उपलब्ध वातावरण से अधिक प्रभावित होता है

  5. यह एक जटिल प्रक्रिया है

  1. विकास में वृद्धि समाहित होती है

  1. विकास कार्य क्षमता अथवा कौशल द्वारा प्रकट होता है

  2. विकास सकारात्मक अथवा नकारात्मक दोनों हो सकता है

  3. विकास का क्रम निश्चित नहीं होता है

  1. विकास शारीरिक विकास व अधिगम का सम्मिलित रूप है


प्रश्न: - जीवाणु नाशक दवाइयों (एन्टीबायोटिक्स Antibiotics) पर टिप्पणी लिखिए

एंटीबायोटिक औषधियाँ शरीर के अंदर उत्पन्न एवं पनपने वाले जीवाणुओं को नष्ट करती हैं व उनकी वृद्धि को रोकती हैं।

इनका निर्माण अत्यन्त सूक्ष्म जीवाणुओं (Micro organism), मोल्ड्स (Molds), फन्जाई (fungi) आदि से होता है। अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1929 में स्मॉल पॉक्स के जीवाणु को समाप्त करने के लिए पहली एन्टीबायोटिक औषधि पेन्सिलीन का आविष्कार किया था।

उदाहरण- पेनिसिलीन (Penicillin), टेट्रासाइक्लिन (Tetra-cycline), स्ट्रेप्टोमाइसीन (Streptomycin)

प्रश्न: यूनीसेफ के क्या कार्य हैं

यूनिसेफ के कार्यों का बड़ा क्षेत्र है जिसके प्रमुख क्षेत्र निम्न है

  • बच्चों को पोषण उपलब्ध कराना
  • मातृत्व और शिशु स्वास्थ्य, 
  • नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में कमी लाना 
  • गर्भवती महिलाओं एवं बच्चों का टीकाकरण 
  • स्वच्छ पेयजल
  • स्वच्छता और शिक्षा
  • प्राकृतिक आपदा में बच्चों और उनके परिवारों को मदद देना 
  • बच्चों को गरीबी से बाहर लाना
  • बच्चों को बाल श्रम से बचाना
  • बाल विवाह को रोकना 
  • यह सुनिश्चित करना कि अधिक से अधिक बच्चे और बच्चियां स्कूल जाएं।

प्रश्न: स्वास्थ्य शिक्षा किसे कहते हैं 

स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ-

वह शिक्षा जो कि लोगों को स्वास्थ्य के संबंध में जागरूक करती है तथा लोगों को स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित करती है स्वास्थ्य शिक्षा कहलाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) की वर्ष 1954 की तकनीकी रिपोर्ट के अनुसार-

स्वास्थ्य शिक्षा वह प्रक्रिया है जो लोगों को स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं के बारे में जानने में सहायता करती है तथा उन्हें उचित व्यवहार व उचित जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करती है और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त करने व उसे बनाये रखने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करती है। 

प्रश्न: शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य एवं उद्देश्य लिखिए 

विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करना ही शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य है। संपूर्ण विकास के अंतर्गत शारीरिक विकास, मानसिक विकास, सामाजिक विकास एवं भावनात्मक विकास आते हैं।

विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य की प्राप्ति तभी संभव है जब विद्यार्थी के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं भावनात्मक पक्षों के विकास के उद्देश्य पूर्ण हो जाएं।

शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य

विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निम्न उद्देश्यों की पूर्ति आवश्यक है

शारीरिक विकास का उद्देश्य

शारीरिक विकास शारीरिक शिक्षा का सर्वप्रथम उद्देश्य है। शारीरिक शिक्षा में विद्यार्थी की आयु एवं शारीरिक क्षमता के आधार पर उसके लिए विशेष प्रकार की शारीरिक क्रियाओं व खेलों का कार्यक्रम तैयार किया जाता है जिससे छात्र के समस्त तंत्र जैसे परिसंचरण तंत्र, श्वसन तंत्र, तंत्रिका तंत्र, पेशीय तंत्र, कंकाल तंत्र, पाचन तंत्र आदि अच्छी प्रकार विकसित हो सकें। 

इसके इसके अतिरिक्त विद्यार्थी को अच्छी स्वास्थ्य शिक्षा भी दी जाती है जिससे विद्यार्थी स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हो सके व अपनी समस्त कार्य अच्छी क्षमता व दक्षता के साथ कार्य कर सकें व देश के लिए एक उपयोगी नागरिक बन सकें।

स्नायु-पेशीय समन्वय का विकास (Neuro-Muscular Coordination)

किसी भी कार्य को ठीक प्रकार से करने के लिए हमारे तंत्रिका तंत्र व पेशीय तंत्र के बीच अच्छा समन्वय होना बहुत आवश्यक होता है। विभिन्न शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों व खेलों में निरंतर भाग लेने से यह क्षमता विकसित हो जाती है। अच्छे स्नायु-पेशीय समन्वय से हम लोग अपने कार्य अधिक कुशलता के साथ कर सकते हैं।

मानसिक विकास का उद्देश्य

शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों एवं खेलों में भाग लेने के लिए मानसिक सतर्कता, एकाग्रता वह सधे हुई शारीरिक क्रियाओं की आवश्यकता होती है। अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य एवं अच्छा मानसिक स्वास्थ्य एक दूसरे के पूरक हैं। 

खेलों में अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए खिलाड़ी को चतुर, तार्किक, तेजी से निर्णय लेने वाला, स्थितियों का तुरंत आकलन करने वाला होना चाहिए जो कि अच्छे मानसिक विकास की कारण ही संभव होता है।

इसके अतिरिक्त खिलाड़ी को खेल नियमों की जानकारी, खेल तकनीक का ज्ञान, एनाटॉमिकल और फिजियोलॉजिकल ज्ञान, संतुलित आहार की जानकारी, स्वास्थ्य एवं व्यक्तिगत स्वच्छता के प्रति जागरूकता का ज्ञान भी अति आवश्यक होता है।

साथ ही खेलों में सफलता के लिए खिलाड़ी को उचित योजना एवं रणनीति बनाने की भी आवश्यकता होती है जोकि बुद्धि चातुर्य से ही संभव होता है। 

इस प्रकार शारीरिक शिक्षा कार्यक्रमों व खेलों में निरंतर भाग लेने से विद्यार्थी के मानसिक विकास की उद्देश्य की प्राप्ति सहज रूप से हो जाती है।

सामाजिक विकास का उद्देश्य

सामाजिक विकास से तात्पर्य है कि विद्यार्थी के अंदर आवश्यक सामाजिक गुणों का विकास हो जिससे कि वह अपने समाज में बेहतर समायोजन के साथ रहे व समाज के लिए एक उपयोगी अंग बन सके।

शारीरिक शिक्षा कार्यक्रम व खेलों में निरंतर भाग लेने से छात्र के अंदर अनेक सामाजिक गुण जैसे 

  • खेल भावना और टीम भावना
  • सहयोग व त्याग, 
  • नियमों के पालन करना व नियामक संस्थाओं के सम्मान करना, 
  • नेतृत्व क्षमता, 
  • नेतृत्व के निर्देशों एवं आदेशों का पालन करना, 
  • अपने कर्तव्यों को समझना, 
  • मानवीय मूल्यों का महत्व समझना, 
  • योग्यता का सम्मान करना 
  • सामाजिक व धार्मिक सद्भाव व समरसता को बनाए रखने जैसे गुणों का विकास स्वाभाविक रूप से होता है।

भावनात्मक विकास का उद्देश्य

प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अनेक प्रकार की सहज भावनाएं होती हैं जैसे प्रेम, समर्पण, हर्ष, दया, उत्साह, निराशा, भय, एकाकीपन, क्रोध, घृणा, कुंठा, बदले की भावना, लोभ, ईर्ष्या आदि।

कुछ विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति की विभिन्न भावनाएं जागृत हो सकती हैं। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए भावनाओं पर नियंत्रण आवश्यक होता है और यदि भावनाओं का प्रदर्शन आवश्यक हो तो वह नियंत्रित वह स्वीकार्य रूप में होनी चाहिए।

शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों में छात्र को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने अथवा नियंत्रित करने के अवसर स्वाभाविक रूप से प्राप्त होते हैं जिसके फलस्वरुप छात्र भावनात्मक रूप से अधिक संतुलित वह सक्षम बनता है

















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