2nd Sem (Unit 3-Budget) (यूनिट 3 - बजट )

 


यूनिट 3 - बजट (Unit 3 - Budget)




यूनिट 3 - बजट (Unit 3 - Budget)

3.1

खेल बजट का अर्थ, परिभाषा, बजट तैयार करना एवं खेल बजट बनाने के सिद्धांत 

(Meaning, Definition, Preparation,

3.2

खेल कार्यक्रमों के लेखांकन की आधारभूत बातें 

(Basics of Sports Event Accounting)




3.1 बजट का अर्थ


सामान्य शब्दों में भविष्य की अनुमानित आय और व्यय के दस्तावेज को बजट कहते हैं। बजट भविष्य के आय और व्यय का औपचारिक विवरण होता है। बजट किसी संस्था अथवा व्यक्ति के आय और व्यय को प्रबंधित करने की रूपरेखा होती है। बजट प्राय: एक निश्चित समय अवधि के लिए बनाए जाते हैं।


बजट को भविष्य की एक निश्चित समय अवधि की आर्थिक योजना भी कहा जा सकता है जो कि भविष्य में होने वाले अनुमानित आय तथा संभावित व्ययों पर आधारित होती है।


किसी भी प्रकार के कार्य को करने के लिए कुछ ना कुछ आर्थिक सहायता की आवश्यकता पड़ती है। किसी संस्था संगठन अथवा व्यक्ति की सफलता उसके आर्थिक संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग पर निर्भर करती है। आय और व्यय को नियोजित करना तथा उनके बीच अच्छा समन्वय करना एक कुशल प्रबंधक महत्वपूर्ण गुण होता है। एक कुशल प्रबंधक के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि उसे अपने सभी स्रोतों से होने वाली आय एवं व्यय की पूर्ण जानकारी हो।


बजट आवंटन की प्रक्रिया वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में की जाती है परंतु कभी-कभी किसी विशेष कार्य योजना के लिए विशेष बजट अलग से भी बनाए जाते हैं। 


बजट शब्द वास्तव में लैटिन शब्द बुल्गा से लिया गया है. बुल्गा का अर्थ होता है चमड़े का थैला. इसके बाद यह शब्द फ्रांस की भाषा में बोऊगेट बना. इसके बाद थोड़े से अपभ्रंश के बाद अंग्रेजी में यह शब्द बोगेट या बोजेट बना. बाद में यही शब्द बजट बन गया।


खेल बजट




खेल गतिविधियां किसी भी शिक्षण संस्थान के पाठ्यक्रम (curriculum) का महत्वपूर्ण अंग होती हैं। संस्थान में संचालित होने वाली खेल गतिविधियों का विवरण पहले से ही उपलब्ध होता है जिन पर धन भी खर्च होता है। खेड़ा गतिविधियों पर खर्च की धनराशि क्रीडा मदद से उपलब्ध कराई जाती है। क्रीड़ा मद में धन का संचय विद्यार्थियों द्वारा दिए गए क्रीड़ा शुल्क के द्वारा अथवा किसी सरकारी अनुदान के द्वारा होता है।


किसी संस्थान का खेल बजट एक सत्र में क्रीड़ा मद में एकत्र होने वाले संभावित धन (आय) से उस सत्र में संचालित होने वाली क्रीड़ा गतिविधियों पर होने वाले संभावित व्यय के लिए धन आवंटित करने का लेखा-जोखा होता है। बजट बनाने की प्रक्रिया सत्र के आरंभ में की जाती है।




बजट की विशेषताएं / प्रकृति


  1. प्रबंधन की भांति बजट बनाना भी एक लक्ष्य पूर्ण (लक्ष्य उन्मुख) प्रक्रिया है

  2. बजट बनाना एक भविष्योन्मुख कार्य है

  3. बजट भविष्य की वित्तीय योजनाओं का संग्रह होता है

  4. बजट से भविष्य के संभावित आय और व्यय का अनुमान हो जाता है


बजट बनाने के उद्देश्य


बजट बनाने का प्रमुख उद्देश्य योजनागत कार्य को पूर्ण करने में उपलब्ध पूंजी व विभिन्न स्रोतों से होने वाली आय तथा कार्यों पर होने वाले व्यय को प्रबंधित करना होता है। जिस के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं 👇


  1. भविष्य की योजनाओं के क्रियान्वयन में आय और व्यय का अनुमान लगाना

  2. उद्देश्यों को पूर्ण करने के लिए पूंजी की उपलब्धता सुनिश्चित करना

  3. उपलब्ध आर्थिक संसाधनों का कौशल उपयोग करना

  4. धन की अनावश्यक बर्बादी को रोकना तथा लागत में कटौती करना 

  5. विभिन्न विभागों/व्यक्तियों की आर्थिक भूमिका एवं कर्तव्य को निर्देशित करना


बजट बनाने की तैयारी





बजट बनाना योजनागत लक्ष्यों को प्राप्त करने की प्रक्रिया में होने वाले व्यय का  वित्तीय नियोजन होता है। भविष्य में होने वाली आय व्यय का अनुमान लगाने के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों से भी सलाह ली जाती है। बजट बनाने में निम्न सावधानियों का ध्यान रखा जाना चाहिए 👇

  1. विशेषज्ञों की सलाह से बजट निर्माण - भविष्य में होने वाली आय व्यय का अनुमान लगाने के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों और अनुभवी लोगों से भी सलाह ली जाती है।


  1. संतुलन - अनुमानित आय/राजस्व और नियोजित व्यय के बीच में संतुलन होना आवश्यक है। अनुमानित आय/राजस्व हमेशा नियोजित व्यय के बराबर होना चाहिए। किसी भी दशा में नियोजित व्यय अनुमानित आय से अधिक नहीं होनी चाहिए।


  1. संभावित आय का  ज्ञान- सभी स्रोतों से होने वाली आय को बजट बनाने की क्रिया में शामिल करना चाहिए


  1. अनुमान काल्पनिक नहीं होने चाहिए- होने वाली आय और संभावित व्ययों का अनुमान काल्पनिक नहीं होना चाहिए। यह यथासंभव वास्तविकता के निकट होना चाहिए।


  1. आय और व्यय का रिकॉर्ड रखना - आय और व्यय का लिखित विवरण रखना बजट की पारदर्शिता को सुनिश्चित करता है। इसके लिए होने वाली आय, क्रय तथा स्टॉक का विवरण अंकित करना तथा उसका समय समय पर सत्यापन करना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।


  1. पिछले बजट से सीख - पिछले वर्ष के बजट के अच्छे और कमजोर पक्षों को ध्यान में रखना चाहिए।



खेल बजट बनाने की सिद्धांत 


शारीरिक शिक्षा से संबंधित संपूर्ण कार्यक्रमों का प्रबंधन करना बहुत ही विस्तृत और जटिल होता है। शारीरिक शिक्षा में खेलों के मैदान पर होने वाली कक्षाओं, खेल से संबंधित कार्यक्रम एवं प्रतियोगिताओं के अलावा कक्षाओं में पठन-पाठन भी होता है। जिसके लिए जिम्नेशियम, खेल मैदानों का रखरखाव, छात्र संख्या के आधार पर क्रीडा सामग्रियों का क्रय करना, वितरण तथा प्रयोग करना आवश्यक होता है। क्रय की जाने वाली सामग्री में उपभोज्य तथा गैर-उपभोज्य वस्तुएं भी होती हैं। जिनका अलग अलग तरीके से स्टॉक प्रबंधन होता है। शारीरिक शिक्षा एवं खेल क्रियाओं की जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए खेल एवं शारीरिक शिक्षा का बजट बनाते समय में सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए 👇


  1. संस्था के उद्देश्य - बजट निर्धारित करते समय संस्था के प्रमुख उद्देश्य तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखना चाहिए। 


  1. शीर्ष प्रबंधन का समर्थन - बजट निर्माण करने वाले व्यक्ति/कमेटी को शीर्ष प्रबंधन का पूर्ण एवं सहायता एवं समर्थन होना चाहिए जिससे वे स्वतंत्रता पूर्वक अपना कार्य कर सकें। बजट निर्माण करने वाले व्यक्ति/कमेटी की भी की संस्था के उद्देश्यों को पूर्ण करने में पूरी निष्ठा होनी चाहिए।  


  1. विशेषज्ञता - बजट बनाते समय संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों और अनुभवी लोगों से सलाह अवश्य लेनी जानी चाहिए


  1. लचीलापन - खेल उपकरणों की कई वैरायटी होती हैं और उनका मूल्य भी का मूल्य सदैव स्थिर नहीं रहता है। इसके अलावा खेल मैदानों के रखरखाव तथा घास काटने जैसे कार्य करने वाले श्रमिकों की मजदूरी में भी बदलाव संभव रहता है जिससे अनुमानित क्रय लागत अथवा मजदूरी में अंतर हो सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए बजट बनाते समय पर्याप्त लचीलापन रखा जाना चाहिए। 


  1. प्राथमिकताएं सुनिश्चित करना - बजट बनाते समय सर्वप्रथम मूलभूत आवश्यकताओं को पूर्ण करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। गैर जरूरी चीजें और विलासिता पर होने वाले खर्चों मैं कटौती करनी चाहिए तथा अंकुश लगाना चाहिए।


  1. अत्यधिक कल्पनाशीलता से बचना- भविष्य के लिए बजट बनाने में कल्पनाशीलता आवश्यक होती है परंतु होने वाली आय और संभावित व्ययों का अनुमान अत्यधिक काल्पनिक नहीं होना चाहिए। यह यथासंभव वास्तविकता के निकट होना चाहिए।  


  1. लेखांकन (Accounting) - समस्त आय और व्यय (सामग्री का क्रय) का लेखांकन करना आवश्यक होता है। अच्छे लेखांकन प्रणाली से बजट का सफल कार्यान्वयन संभव होता है। लेखांकन से निरंतर हो रही आय और व्यय का लेखा-जोखा मिलता रहता है। 


  1.  पिछले बजट से सीख - पिछले वर्ष के बजट के अच्छे और कमजोर पक्षों को ध्यान में रखना चाहिए।


  1. समय - बजट बनाने की प्रक्रिया सत्र आरंभ से पर्याप्त पहले की जानी चाहिए। बजट बनाने से पूर्व समस्त दृष्टिकोण पर गहन चर्चा करनी चाहिए जो कि एक समय लेने वाले प्रक्रिया है।  बजट बनाते समय जल्दबाजी से बचना चाहिए।



3.2 खेल कार्यक्रमों के लेखांकन की आधारभूत बातें  (Basics of Sports Event Accounting)


लेखांकन (Accounting) की अवधारणा 


वे सभी कार्य जहां पर वित्तीय लेनदेन होता है वहां पर लेखांकन की आवश्यकता पड़ती है। किसी कार्य अथवा व्यवसाय में होने वाले सभी वित्तीय लेन-देनों को तिथिवार क्रमबद्ध तरीके से बही/रजिस्टर (Book) के रूप में लिखना ही “लेखांकन” (Accounting) कहलाता है। लेखांकन को लेखाकर्म अथवा लेखा-जोखा के नाम से भी जाना जाता है। लेखांकन को वित्तीय लेन-देन को बही खाते में दर्ज करने की कला भी कह सकते हैं।



खेल सामग्री का लेखांकन


खेलों में वित्तीय लेनदेन के अलावा खेलों की क्रय की जाने वाली सामग्री की भी भंडार पंजिका (Stock Register स्टॉक रजिस्टर) में एंट्री करनी होती है। क्रीड़ा सामग्री के भी दो प्रकार हैं उपभोज्य और गैर-उपभोज्य सामग्री।


उपभोज्य सामग्री वे सामग्री कहलाती हैं जोकि प्रयोग के बाद खत्म हो जाती है या एक निश्चित समय तक प्रयोग कर लेने के बाद वे उपयोग करने लायक नहीं रह जाती हैं जैसे चूना पाउडर, गेंद, शटल कॉक, बैट आदि। वे सामग्री भी उपभोज्य सामग्री कहलाती है जिसे विद्यार्थियों को व्यक्तिगत प्रयोग के लिए वितरित कर दिया जाता है जैसे टीम गेम्स की किट, टी-शर्ट, नेकर, ट्रैकसूट, जूते इत्यादि।


गैर-उपभोज्य सामग्री में वे वस्तुएं आती हैं जो कि निरंतर प्रयोग करने के बाद भी खराब अथवा नष्ट नहीं होती हैं जैसे गोला (Shot Put), गोल पोस्ट, बास्केटबॉल पोस्ट, अलमारी आदि।


जो भी क्रीड़ा सामग्री प्रयोग के लिए विद्यार्थियों को दी (issue इश्यू) की जाती है उसमें उस पंजिका में वह अंकित किया जाता है तथा एक निश्चित समय सीमा के बाद प्रयोग की जाने वाली सामग्री के निष्प्रयोज्य हो जाने के उपरांत उसे स्टॉक रजिस्टर में अंकित अवशेष समाग्री में से घटाकर नये अवशेष समाग्री में उसकी एंट्री की जाती है।


लेखांकन क्रिया के चरण


खेल एवं शारीरिक शिक्षा में लेखांकन वित्तीय लेनदेन तथा क्रीड़ा सामग्री के प्रयोग के संबंध में होता है। वित्तीय लेनदेन को बही खाते में और क्रीड़ा सामग्री को भंडार पंजिका (Stock Register) में लेखांकित किया जाता है। लेखांकन के प्रारंभिक क्रियाओं में निम्नलिखित 3 चरणों को शामिल किया जाता है-

  • अभिलेखन(Recording)

  • वर्गीकरण (Classification) एवं

  • संक्षेपण(Summarising)


अभिलेखन (Recording) :  

व्यवसाय में जो भी लेन-देन होते हैं उनको पहली बार जिस बही (खाते अथवा पंजिका) में लिखा जाता है उसे ‘अभिलेखन’ कहते हैं । यह लिखने की क्रिया ही अभिलेखन (Recording) (रोजनामचा) है जिसे अंग्रेजी में Entry (एंट्री) कहा जाता है।

खेलों की क्रय की जाने वाली सामग्री की भंडार पंजिका (Stock Register स्टॉक रजिस्टर) में एंट्री की जाती है।


वर्गीकरण (Classification) : व्यवसाय में धन के कई तरह के लेन-देन होते हैं। जैसे – नगद, उधार, नगद वापसी, उधार वापसी, माल का क्रय, विक्रय, विक्रय वापसी आदि। रोजनामचा (Entry-एंट्री) में लिखे सभी लेनदेन को अलग-अलग भागों में विभाजित करके लिखना है ‘वर्गीकरण’ कहलाता है।

क्रीड़ा सामग्रियों के मामले में इसे प्राप्त सामग्री (Received), इश्यू सामग्री (issued), और अवशेष (Balance) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है


संक्षेपण (Summarising):  वर्गीकृत लेनदेन को एक ही स्थान पर लिखा जाना है ‘संक्षेपण’ है इसे तलपट (Trail Balance) के नाम से भी जाना जाता है। जो कि जांच करने का कार्य करता है।


लेखांकन की विशेषताएं 


  1. लेखांकन वित्तीय लेन-देन को बही खाते में दर्ज करने की कला है ।

  2. वित्तीय लेन-देन की पहचान करना और इसे नियमित तथा सुव्यवस्थित ढंग से तिथिवार लेखा पुस्तकों में लिखना।

  3. लेखा बहियों में केवल मौद्रिक लेन- देन का लेखा किया जाता है।

  4. लेखांकन वित्तीय लेनदेन एवं घटनाओं को इस प्रकार से प्रस्तुत करता है जिससे कि लेन-देन का विश्लेषण तथा व्याख्या आसानी से होती है।

  5. अच्छे लेखांकन से वित्तीय लेनदेन संबंधी सभी सभी वांछित सूचनाओं को एक नजर में देखा जा सकता है ।


लेखांकन के उद्देश्य :

प्रत्येक मान्यता प्राप्त सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थाओं के लिए अपना लेखांकन रिकॉर्ड बनाना आवश्यक होता है। लेखांकन के उद्देश्य निम्नलिखित है –


  1. नियमित एवं सुव्यवस्थित लेखा – लेखांकन का प्रथम उद्देश्य सभी लेन-देन का नियमित एवं सुव्यवस्थित ढंग से लेखा करने से है । सुव्यवस्थित ढंग से लेखा करने से भूल और गलती की संभावना कम हो जाती है।

  2. शुद्ध लाभ -हानि का निर्धारण – यह लेखांकन का दूसरा उद्देश्य है। एक निश्चित अवधि का लाभ -हानि ज्ञात करना। लाभ- हानि को ज्ञात करने के लिए किस संस्था द्वारा व्यापार खाता(Trading Account), लाभ -हानिखाता (Profit & Loss Account) तथा आर्थिक चिट्ठा (Balance Sheet ) बनाया जाता हैं।

  3. कानूनी रूप से आवश्यक – सभी मान्यता प्राप्त सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थाएं अपना लेखांकन रिकॉर्ड रखने के लिए कानूनी रूप से बाध्य होते हैं, जिसे प्रत्यक्ष (Direct) और अप्रत्यक्ष (Indirect) कर (Tax) का रिटर्न दाखिल करने के लिए प्रयोग किया जाता हैं।

  4. पक्षकारों को सूचना – व्यवसाय से संबंध रखने वाले सभी पक्षों को सूचना उपलब्ध कराना लेखांकन का महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है। व्यवसाय में कई पक्षों के हित होते हैं जैसे – स्वामी (Proprietor), आयकर विभाग (income tax Department), लेनदार (Creditor), विनियोजक (Investor) आदि।

  5. वित्तीय स्थिति – लेखांकन से संस्था की वित्तीय स्थिति के संबंध में जानकारी मिलती है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक आर्थिक चिट्ठा (Balance Sheet) बनाया जाता है । जिसमें दाएं ओर संपत्तियों(Assets) तथा बाएं और पूंजीवाद व दायित्व(Capital And Liabilities) को प्रदर्शित किया जाता है।









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