Sem 1 - Unit II: शारीरिक शिक्षा के सामाजिक आधार

 Unit II: 

शारीरिक शिक्षा के सामाजिक आधार



  1. खेल समाजशास्त्र का अर्थ परिभाषा एवं महत्व
  2. संस्कृति एवं खेल
  3. खेलों के माध्यम से समाजीकरण
  4. खेल और लैंगिक विविधताएं

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से तात्पर्य किसी स्थान विशेष पर रहने वाले व्यक्तियों के ऐसे समूह से है जोकि परस्पर एक-दूसरे पर प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से निर्भर रहते हैं तथा उनके बीच परिवारिक, मानसिक अथवा सामाजिक संबंध हो सकते हैं। समाज के सदस्य एक दूसरे के कल्याण के प्रति समर्पित होते हैं। 

प्रायः समाज के लोग एक जैसी घोषित अथवा अघोषित धारणा, परंपरा रीति-रिवाजों का निर्वहन करते हैं। परंतु किसी भी समाज में प्रचलित धारणा अथवा परंपराएं समय के साथ बदलती रहती हैं। 

समाज में रहने वाले व्यक्तियों के आचरण, कर्तव्यों और संबंधों का अध्ययन समाजशास्त्र कहलाता है।

खेल-समाजशास्त्र

खेल-समाजशास्त्र समाजशास्त्र की वह शाखा है जिसमें खेल और समाज के बीच संबंधों का अध्ययन किया जाता है। खेल-समाजशास्त्र इस बात की विवेचना करता है खेल किस प्रकार सामाजिक मूल्यों को अथवा सामाजिक मूल्य किस प्रकार खेलों को प्रभावित करते हैं।

खेल-समाजशास्त्र में खेलों का तात्कालिक आर्थिक, राजनीति, मीडिया,आयु वर्ग, लैंगिक भेद, धर्म आदि से संबंध की भी विवेचना की जाती है।

खेल समाजशास्त्र के अध्ययन का महत्व

व्यक्ति समाज की इकाई होता है और खेल व्यक्ति के व्यक्तित्व को प्रभावित करने का सशक्त माध्यम होता है।

खेल मानव की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण अंग है तथा खेलों का व्यक्ति के व्यक्तित्व बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है। 

समाजशास्त्र में खेलों को एक सामाजिक संस्था के रूप में स्वीकार किया गया है जो कि समाज में नए सकारात्मक परिवर्तन लाने का सर्वमान्य सशक्त माध्यम होता है। 

खेल अलग-अलग प्रकार की सामाजिक, आर्थिक, जातीय, धार्मिक और राष्ट्रीय पृष्ठभूमि के खिलाड़ियों को एक मंच पर आने का अवसर देता है जिससे वे एक दूसरे के सामाजिक मूल्यों एवं आदर्शों से परिचित होते हैं तथा एक दूसरे से सकारात्मक बातें सीखते हैं तथा विभिन्न प्रकार की विविधताओं के प्रति अधिक सहिष्णु बनते हैं।

वैश्विक खेल जैसे ओलंपिक खेल, एशियाई खेल, कॉमनवेल्थ खेल आदि अंतरराष्ट्रीय संस्कृतियों के मध्य आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण साधन हैं।

खेल समाज में समरसता, राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय सद्भाव स्थापित करने का प्रभावी माध्यम है। अतः खेल को एक समृद्ध मानवीय सांस्कृतिक विरासत का अंग माना जाता है ।

वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में जब रंगभेद, नस्लवाद, आतंकवाद, धार्मिक कट्टरवाद आदि जैसे अशांति फैलने के पर्याप्त कारण हैं ऐसे में खेल विश्व शांति के लिए एक आशा की किरण हैं। ऐसे परिदृश्य में खेल समाजशास्त्र का अध्ययन के महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।




खेलों के माध्यम से समाजीकरण

समाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषा- 

सामाजिकरण व्यक्ति को सामाजिक मूल्यों, मान्यताओं व परंपराओं से परिचित कराने की व उसे समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की प्रक्रिया है। यह व्यक्ति को एक सामान्य जैविक प्राणी से सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित करने का प्रयास है।

समाजीकरण के द्वारा व्यक्ति समाज में प्रचलित नियमों, मान्यताओं, परंपराओं, रीति-रिवाजों के अनुसार व्यवहार करना सीखता है वह अपने समाज के लिए एक उपयोगी अंग बनता है। समाजीकरण की प्रक्रिया व्यक्ति के परिवार से ही प्रारंभ हो जाती है

समाजीकरण के औपचारिक एवं अनौपचारिक अभिकरण (संस्थान)

शैक्षणिक संस्थान, सांस्कृतिक समूह, राजनीतिक संगठन, जातीय संगठन, धार्मिक संस्थाएं आदि सामाजिकरण के औपचारिक अभिकरण हैं

परिवार, पड़ोस, क्रीड़ा समूह, मित्र मंडली, विवाह, नातेदारी आदि समाजीकरण के अनौपचारिक अभिकरण हैं

क्रीडा समूह में छात्र अपनी उम्र की अन्य लोगों से परिचित होता है। खेल खेलते समय उसे कई नियमों का पालन करना पड़ता है जिससे उसके अंदर नियमों के पालन करने व संस्थाओं के सम्मान करने का गुण आता है।

साथ ही खेलते समय उसमें विभिन्न भावनाएं जैसे हर्ष, क्रोध, उत्साह, निराशा ईर्ष्या उत्पन्न होती हैं। खेलों के माध्यम से वह उन पर नियंत्रण करना सीख जाता है तथा वह अपनी भावनाओं को स्वीकार्य रूप से प्रकट करना सीख जाता है।

खेल गतिविधियों के दौरान परस्पर सहयोग और प्रतिस्पर्धा की भावना का गुण उसमें विशेष रुप से विकसित होता है तथा हार-जीत की स्थितियों में वह अपने व्यवहार पर नियंत्रण करना सीखता है 

इन समस्त गुणों के विकसित होने से छात्र के एक बेहतर सामाजिक प्राणी बनने की संभावना बढ़ जाती है।

इसीलिए शिक्षा में शारीरिक शिक्षा एवं खेल को विशेष महत्व दिया जाता है जिससे छात्र की समाजीकरण की प्रक्रिया ठीक से संपादित हो सके।

खेल एवं लैंगिक विविधताएं



मनुष्यों में लैंगिक भेद प्रकृति द्वारा प्रदत्त है। लैंगिक रूप से मनुष्य पुरुष अथवा महिला के रूप में जन्म लेते हैं, परंतु अनुवांशिक कारणों से कुछ लोग ऐसे भी हो सकते है जिनमें पुरुष अथवा महिला दोनों के लक्षण पाए जाते हैं, ऐसे लोगों को वह ट्रांसजेंडर कहा जाता है। 

व्यक्तियों में पुरुष अथवा महिलाओं के गुण उनमें टेस्टोस्टेरोन (पुरुष सेक्स हार्मोन) अथवा एस्ट्रोजन (महिला सेक्स हार्मोन) की उपस्थिति के कारण होता है। 

शरीर में सेक्स हार्मोनों की उपस्थिति के कारण बालक तथा बालिकाओं की शारीरिक बनावट एवं क्षमताओं में प्राकृतिक रूप से कुछ अंतर होते हैं। महिला पुरुषों में अंतर केवल जैविक ही नहीं होते हैं बल्कि भावनात्मक रूप से भी वे एक दूसरे से काफी भिन्न होते हैं।

शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों के संचालन के समय लैंगिक विविधताओं का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। 

महिला पुरुषों के बीच कुछ मुख्य जैविक एवं भावनात्मक लैंगिक भेद निम्न हैं 👇

महिला

  1. वयस्क होने होने से पूर्व बालिकाओं की शारीरिक वृद्धि तेजी से होती है
  2. सामान्य रूप से बालिकाएं कद में छोटी होती हैं परन्तु उनमें परिपक्वता (maturity) जल्दी (लगभग 18 वर्ष की आयु तक) आती है
  3. महिलाओं के शरीर सामान्य तौर पर अधिक स्थूल व वसा युक्त होते हैं जो उन्हें तेज दौड़ने में बाधा उत्पन्न करते हैं
  4. सामान्य तौर पर महिलाओं की मांसपेशियां, हड्डियां व जोड़ पुरुषों के मुकाबले कमजोर होते हैं जो कि उनके भारी कार्य करने में बाधक होती है
  5. सामान्य तौर पर महिलाओं का हृदय छोटे आकार का होता है इस कारण वे तेजी से थकने वाले कार्य अधिक देर तक नहीं कर सकती हैं
  6. सामान्य तौर पर महिलाओं के घुटने आपस में मिलते हैं (Knock Knee), जो कि उनके तेज दौड़ने में बाधक होते हैं
  7. महिलाएं भावनात्मक रूप से अधिक संवेदनशील होती हैं

पुरुष

  1. व्यस्क होने से पूर्व बालकों की शारीरिक वृद्धि धीमी गति से होती है
  2. बालक सामान्यतः ऊंचे कद के होते हैं परंतु बालिकाओं की अपेक्षा देर से परिपक्व (maturity) होते हैं
  3. बालक सामान्य तौर पर अपेक्षाकृत मजबूत मांसपेशियों वाले होते हैं
  4. पुरुषों की मांस पेशियां, हड्डी व जोड़ अधिक मजबूत होते हैं
  5. पुरुषों का ह्रदय महिलाओं की अपेक्षा आकार में थोड़ा बड़ा होता है जिससे उनकी थकान सहने की क्षमता अधिक होती है
  6. पुरुष अधिकांशत: Knock Knee नहीं होते हैं
  7. पुरुष भावनात्मक रूप से अधिक स्थिर होते हैं


शारीरिक शिक्षा एवं खेल गतिविधियों के संचालन में बालक एवं बालिकाओं की शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं का ध्यान रखा जाना चाहिए।

वर्तमान प्रगतिशील युग में बालक बालिकाओं के लैंगिक अंतर के कारण होने वाले भेदभावों को लगातार कम करने का प्रयास किया जा रहा है। 

टोक्यो ओलंपिक 2020 में अनेक ऐसी खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की गई जिसमें पुरुष और महिला एक ही टीम के सदस्य थे।

आधुनिक ओलंपिक खेलों में प्रतिभागी पुरुष और महिला खिलाड़ियों की संख्या लगभग बराबर ही होती है।

विभिन्न खेल संस्थाएं एवं समाजसेवी संगठन उन लोगों के खेलों मैं भाग लेने के अधिकारों के बारे में भी विचार कर रहे हैं जिनमें पुरुष और महिला दोनों लिंगों के लक्षण पाए जाते हैं।







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